नमस्कार दोस्तों, आज के आर्टिकल में हम महत्वपूर्ण टॉपिक बवासीर में लैट्रिन टाइट क्यों होती है, पर चर्चा करने वाले हैं। बवासीर गुदा में होने वाला बहुत ही भीषण रोग है। जिसमे गुदा द्वार पर मांस के मस्से निकल आया करते है। जो मलत्याग के समय प्रवाहण करने पर गुद नलिका में, लम्बाई की ओर फैली रक्तवाहिनियों में खून भरने से बनते है। जिन पर सौत्रिक धातु का आवरण बन जाने से, चलने - फिरने आदि के कारण रगड़ लगने से बहुत ही तकलीफ देह होते है।
जिसमे रोगी को सबसे अधिक परेशानी तब होती है। जब वह मलत्याग के लिए शौचालय में बैठता है। जिसका मूल कारण बवासीर के मस्सों में घाव का होना है। जिससे गुदा में भारीपन, सूजन और दर्द बना रहने लगता है। इसे चिकित्सा शास्त्रों में बवासीर के लक्षण कहा गया है।
हालाकिं गुदा में होने वाले सभी रोग मलबद्धता ( कब्ज ) के कारण होते है। जो काफी समय से बने रहने से, बवासीर और फिशर जैसे रोगो को जन्म देते है। जिसमे पेट साफ न होने की समस्या मुख्य तौर पर बनी रहती है। जो पुरानी होने पर बहुत ही भीषण समस्या पैदा करती है जिससे हृष्ट - पुष्ट बवासीर रोगी भी शीघ्र ही कमजोर हो जाता है।
विस्तार से जानिए बवासीर क्या होता है
आयुर्वेद आदि में बवासीर का स्थान गुद वलियो को माना गया है। जबकि आधुनिक लोग बवासीर को गुद नलिका में होने वाला रोग मानते है। जोकि मलाशय और गुदौष्ठ के बीच का भाग है। जिसमे शंखीय नुमा डेढ़ - डेढ़ अंगुल की एक के ऊपर एक चढ़ी हुई, तीन पेशिया पायी जाती है। जिनको गुद वलिया कहा जाता है और ये शिरीय रक्तवाहिनियां, बिना कपाट के ही लम्बाई की ओर फैली रहती है।
बवासीर में लैट्रिन टाइट क्यों होती है ? मलत्याग के समय जोर लगाने पर, खून का कुछ न कुछ अंश गुद रक्तवाहिनियों में चला जाता है। जो प्रत्येक बार मलत्याग के समय, प्रतिदिन दोहराई जाती है। जिससे गुदा रक्तवाहिनियों में खून का जमाव होता रहता है और एक दिन बढ़ते हुए मस्सों के रूप में निकल आता है। जिस पर प्रवाहण के दौरान जोर पड़ने से, बढ़ता और फूलता जाता है। जिससे एक दिन बढ़कर गुदा से बाहर लटकने लगता है। जिसे बवासीर के मस्से कहा जाता है।
बवासीर के यह मस्से जितने पुराने होते जाते है। उतने ही अधिक दर्द और तकलीफ को बढ़ाने लगते है। जिससे यह अधिक बलशाली होकर, विविध प्रकार के उपद्रवों को जन्म देता है। जो रोगी को शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूपों में कमजोर करता है।
बवासीर रोग पुराना होने पर, जीर्णता को प्राप्त होता है। जिसमे कड़े मल तो क्या गीले और ढीले मल को भी, बाहर निकालने के लिए जोर लगाना पड़ता है। सीधे तौर पर कहे तो बवासीर में मल इतना कडा हो जाता है कि बिना जोर लगाए बाहर ही नहीं निकलता।
बवासीर क्यों होता है?
आयुर्वेद में हर व्यक्ति की शरीर को एक दुसरे से भिन्न माना गया है। जिसके कारण अलग - अलग लोगो में बवासीर होने के कारण भी अलग - अलग है। परन्तु बवासीर रोग में प्रमुखता से निम्न कारण देखे जाते है -
- कोष्ठबद्धता, कब्ज इत्यादि होने से
- अधिक समय से दस्त और पेचिस होने से
- अत्यधिक भार उठाने से
- अधिक समय तक एक ही जगह बैठे या खड़े रहने से
- दूषित और बासी आहार करने से
- अत्यधिक तला - भुना, चिकनाई युक्त और तीखा आहार करने से
- अनियमित और तेज गति की सवारी करने से
- अत्यधिक यात्रा करने आदि से
- नशीले पदार्थो का सेवन करने से
- किसी विशेष दवा आदि का सेवन करने से
- मल - मूत्रादि अधारणीय वेगो को धारण करने से
- रात्रि में जागने और दिन में सोने से
- पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने से
- अत्यधिक स्त्री - पुरुष प्रसंग में लगे रहने से
- अधिक समय तक धूप और आग की आंच लगने से
- फाइबर की कमी वाले आहार द्रव्यों का सेवन करने से
- मल त्याग के समय जोर लगाकर कांखने से
- ठन्डे पानी से शौच करने, आदि से।
बवासीर के लक्षण
बवासीर की बीमारी में दोष और रोग गत, दोनों प्रकार के लक्षण पाए जाते है। जिसके कारण अलग - अलग लोगो में बवासीर के लक्षणों में अंतर पाया जाता है। इसी कारण बवासीर की समस्या में होने वाली तकलीफ का अनुभव, किसी को कम होता है तो किसी को अधिक। किन्तु आमतौर पर अधिकांश लोगो में, बवासीर के निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है -
- पेट में दर्द होना
- गुदा द्वार पर भारीपन का एहसास होना
- पेट साफ न होना
- मलद्वार पर खुजली होना
- बार - बार मल - मूत्र का वेग आना
- जल्दी - जल्दी प्यास का लगना
- हाथ - पैर में दर्द होना
- पेट में मरोड़ और दर्द होना
- गुदा में जलन होना
- मलद्वार पर चुभन होना
- बिना जोर लगाए मल का बाहर न आना
- गुदा से रक्तस्राव होना
- गुदा द्वार पर मांस के मस्से निकल आना
बवासीर का इलाज
बवासीर रोग पेट में दोषो के संग्रह से होने वाला रोग है। जिसमे दोष गत विकृतिया तो पायी ही जाती है। इसके साथ अंग गत गड़बड़ियां भी पायी जाती है। जिसके कारण बवासीर का इलाज करते समय, दोनों विसंगतियों पर ध्यान दिया जाता है।
जिससे शीघ्रातिशीघ्र रोग पर विजय पायी जा सके। जिसके लिए दवाइयों के साथ - साथ, देह के अनुकूल सुव्यवस्थित और आवश्यक खानपान की भी आवश्यकता पड़ती है। तब जाकर कही बवासीर रोग से हमारा पीछा छूटता है।
दोषगत विकृतियों की बात की जाय तो बवासीर में, वात - पित्त - कफ नामक त्रिदोष पाए जाते है। इनके साथ इनके अनुबन्धी दोष भी पाए जाते है। जो बवासीर की जटिलता को बढ़ाते है। जिसके कारण बवासीर रोग साध्य और असाध्य नामक दो श्रेणियों को धारण करता है।
जबकि अंगगत विकृतियों की बात की जाय तो पूरा का पूरा पाचन तंत्र बवासीर रोग में प्रभावित होता है। जिसमे मलाशय, मलद्वार और गुद नलिका विशेष रूप से प्रभावित होती है। जिसके कारण बवासीर दर्द के साथ तकलीफों को भी पैदा करता है।
हालांकि की एकल दोषो से होने वाली बवासीर, सुखसाध्य है। जिसका उपचार बहुत ही आसानी से हो जाता है। पर कभी - कभी यह भी बहुत परेशानी का कारण बनती है। जिसमे चुभन और जलन नामक दो गंभीर समस्याए होती है। जो रोगी को मरणासन्न तक बना देती है।
जबकि द्वन्दज बवासीर कष्टसाध्य होती है। जिसमे दो दोष आपस में मिलकर रोग की समस्या को पैदा करते है। जिसमे दो दोषों की मिलीजुली दर्द और तकलीफ पाए जाते है। जबकि त्रिदोषज बवासीर असाध्य मानी जाती है। जिसकी चिकित्सा बहुत ही सावधानी और गंभीरता पूर्वक की जानी चाहिए।
बवासीर के मस्से सुखाने की आयुर्वेदिक दवा
मानाकि बवासीर बहुत ही गंभीर और तकलीफ देह गुदा रोग है। परन्तु बवासीर के मस्से सुखाने की दवा, इनका बहुत ही आसानी से उपचार करते है। जिसमे लक्षण भेद से निम्न योग लाभदायी है -
- थोड़े से काले तिल को चबाकर अनुपान के रूप में, गुनगुने पानी से बवासीर के मस्से सूखकर झड़ जाते है। इसके साथ बवासीर रोग का दंश झेलकर कमजोर हुआ, दुबला - पतला आदमी भी मजबूत हो जाता है।
- अनारदाना के चूर्ण के साथ गुड़ का सेवन करने से बवासीर का मस्सा सूख जाता है।
- पुरइनपाढ़ी के चूर्ण के साथ सोंठ के चूर्ण का सेवन करने से, सभी तरह की बवासीर के दर्द से छुटकारा मिलता है।
- शक्कर के साथ नागकेशर के चूर्ण का सेवन करने से, खूनी बवासीर के मस्से भी नष्ट हो जाते है।
- हर्रे के चूर्ण को छाछ में मिलाकर पीने से, बादी और खूनी बवासीर के मस्से जड़ से समाप्त हो जाते है।
- बवासीर में लैट्रिन टाइट होने पर, दूध में एरंड तेल को मिलाकर पीने से मल नरम हो जाता है। जिससे मलत्याग के समय दर्द कम होता है।
- बवासीर में पेट साफ न होने पर, मठ्ठे में अजवाइन और सोंठ मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है।
आज आपने क्या सीखा
बवासीर में लैट्रिन टाइट होने की मुख्य वजह, पेट में लैट्रिन सूखने का कारण है। जिसके होने का मूल कारण कब्ज आदि है। जिससे बवासीर में मल बिना जोर लगाए बाहर ही नहीं आती। वास्तव में देखा जाय तो कब्ज के अतिजीर्ण हो जाने पर ही बवासीर की समस्या पायी जाती है।
इसकी मौजूदगी में बड़ी आंत और गुद पेशियों की क्रियाशीलता कम होते - होते समाप्त हो जाती है। जिसके कारण सख्त मल के साथ - साथ, ढीले एवं गीले मल को भी बाहर निकलने के लिए जोर लगाना पड़ता है।
जिससे गुद वलियो की रक्तवाहिनियों में खून जमने लगता है। जो एक दिन फूलकर मस्सों का रूप ले लेता है।
जिस पर रगड़ लगने से दर्द और तकलीफ होती है। इसलिए बवासीर का इलाज करते समय दवाइयों के साथ परहेज आदि रखना होता है। जिसमे सबसे बड़ी सावधानी भोजन, पानी और सुव्यवस्थित दिनचर्या आदि की है। तभी जाकर बवासीर में लैट्रिन टाइट होने की समस्या से निजात मिल पाता है।
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